पूर्णप्रमति में मेरा अनुभव

आशा हिन्दी आध्यापिका

पूर्णप्रमति को यदि एक् वाक्य में परिभाषित किया जाये तो मेरे अनुसार एक बीज को सम्पूर्ण विकसित करना अर्थात् एक बच्चे का सर्वाङ्गीण विकास।

अभि कल की हो बात लगती है जब मुझे यह हिंदी शिक्षण के लिए नियुक्त किया गया। प्रारंभ मे तो बहुत सी कठिनाईयाँ आई क्यों कि हिंदी बच्चों के लिए एक नयी भाषा थी। बहुत बार में निराशा हे जाती थी, लगता था कि मिझसे नही होगा लेकिन मेरी सहयोगी अध्यापिकाओं और रघुराम भैया ने मुझे प्रोत्साहित किया कि अभी बच्चों के लिए हिंदी भाषा नही है पर धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। उन सभी के प्रोत्साहन के कारण मेरे लिए हिंदी शिक्षण का कार्य एक जिम्मेदारी कम और चुनौती अधिक हो गया। अब मुझे यह एक साल से भी अधिक होगया है। स्थिति में भी बहुत परिवर्तन हो गया है। बच्चों की सीखने की ललक और सभी के सहयोग ने इस कार्य को आसान बना दिया है। बच्चों से हिंदी में वार्तालाप करने से धीरे-धीरे उनकी भी हिंदी के प्रति रुचि बढ़ रही है।

आने वाले समय में मेरा यही प्रयत्न रहेगा कि हर एक बच्चा हिन्दी में वार्तालाप करने में सक्षम हो सके।


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